आप तक ऐसे पहुंचेगा कोरोना का टीका, इसलिए लग रहा है समय; अंतिम चरण का ह्यूमन ट्रायल पूरा होने पर वैक्सीन स्टोरेज और डिस्ट्रीब्यूशन भी चुनौती से कम नहीं - ucnews.in

रविवार, 30 अगस्त 2020

आप तक ऐसे पहुंचेगा कोरोना का टीका, इसलिए लग रहा है समय; अंतिम चरण का ह्यूमन ट्रायल पूरा होने पर वैक्सीन स्टोरेज और डिस्ट्रीब्यूशन भी चुनौती से कम नहीं

दुनियाभर में इस समय अब कोरोना के मामलों से ज्यादा वैक्सीन की चर्चा है। भारत समेत ज्यादातर देश इस साल के अंत कोरोना का टीका उपलब्ध होने की बात कह रहे हैं। लेकिन वैक्सीन तैयार करना जितना चुनौतीभरा काम है उतना ही मुश्किल होगा दुनियाभर के लोगों तक इसे पहुंचाना। वैक्सीन का सफर भी आसान नहीं होता। यह कई चरणों को पार करते हुए आप तक पहुंचता है, इसलिए तैयार होने में सालों लगते हैं। आज संडे स्पेशल खबर में पढ़िए कोविड-19 का टीका आप तक कैसे पहुंचेगा...

1- वायरस की पड़ताल

पहले शोधकर्ता पता करते हैं कि वायरस कोशिकाओं को कैसे प्रभावित करता है। वायरस प्रोटीन की संरचना से देखते हैं कि क्या इम्यून सिस्टम बढ़ाने के लिए उसी वायरस का इस्तेमाल हो सकता है। उस एंटीजन को पहचानते हैं, जो एंटीबॉडीज बनाकर इम्यूनिटी बढ़ा सकता है।

2- प्री-क्लिनिकल डेवलपमेंट में जानवरों पर परीक्षण होता है

मनुष्यों पर परीक्षण से पहले यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि कोई टीका या दवा कितना सुरक्षित है और कारगर है। इसीलिए सबसे पहले जानवरों पर परीक्षण किया जाता है। इसमें सफलता के बाद आगे का काम शुरू होता है, जिसे फेज-1 सेफ्टी ट्रायल्स कहते हैं।

3- क्लिनिकल ट्रायलः इसमें पहली बार इंसानों पर परीक्षण होता है, इसके भी 3 चरण
पहला चरणः
18 से 55 साल के 20-100 स्वस्थ लोगों पर परीक्षण। देखते हैं कि पर्याप्त इम्यूनिटी बन रही है या नहीं।
दूसरा चरणः 100 से ज्यादा इंसानों पर ट्रायल। बच्चे- बुजुर्ग भी शामिल। पता करते हैं कि असर अलग तो नहीं।
तीसरा चरणः हजारों लोगों को खुराक देते हैं। इसी ट्रायल से पता चलता है कि वैक्सीन वायरस से बचा रही है या नहीं। सब कुछ ठीक रहा तो वैक्सीन के सफल होने का ऐलान कर दिया जाता है। अप्रूवल मिलने पर उत्पादन शुरू हो जाता है।

3- सूखी बर्फ या जमी हुई कार्बन-डाई ऑक्साइड में रखते हैं वैक्सीन
वैक्सीन तैयार होने के बाद इसे खास तरह के इंसुलेटेड डिब्बों में निकाला जाता है। वैक्सीन को ठंडा रखने के लिए इसे सूखी बर्फ या जमी हुई कार्बन-डाइ-ऑक्साइड वाले डिब्बे में रखा जाता है।

इन डिब्बों को बड़े-बड़े फ्रीजर में रखते हैं। ये फ्रीजर जहां होते हैं वहां लोग पीपीई किट पहनकर काम करते हैं। दस्ताने और चश्मा भी अनिवार्य रहता है, वरना इतनी ठंड वाले माहौल में काम करना आसान नहीं हो पाता।

4. -20 डिग्री रखा जा सकता है स्टोरेट रूम का तापमान
अब अगला चरण है, इसे लोगों तक पहुंचाने का। अब इसे इंसुलेटेड डिब्बों में सूखी बर्फ डालकर फिर पैक किया जाएगा और जहां जरूरत है वहां भेजा जाएगा। जिस कमरे में इसे रखा जाना है, वहां का तापमान -20 डिग्री तक ठंडा रखा जा सकता है। आमतौर मौजूद वैक्सीन के लिए 2 से 8 डिग्री का तापमान आदर्श माना जाता है।

5. कांच की शीशियों के साथ वैक्सीन रखने के लिए फ्रिज की भी चुनौती

वैक्सीन के प्रोडक्शन और डिस्ट्रीब्यूशन को लेकर कितनी चुनौतियां हैं, इस गावी के सीईओ ने अपनी बात रखी है। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, गावी के सीईओ बर्कले कहते हैं हम इसे लेकर चिंतित थे। ऐसे में हमने दो अरब डोज के लिहाज से पर्याप्त शीशियां पहले ही ख़रीद लीं। हमें लग रहा है कि 2021 तक हमारे पास पास इतनी ही डोज़ होंगी।

न सिर्फ़ कांच की शीशियों की कमी की आशंका है बल्कि ऐसा ही फ्रिज के साथ भी है क्योंकि ज़्यादातर वैक्सीन्स को कम तापमान पर रखना ज़रूरी होगा।

दुनियाभर में 170 टीकों पर चल रहा काम

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, इस समय दुनियाभर में करीब 170 टीकों पर काम चल रहा है, जिनमें से 30 का क्लीनिकल ट्रायल चल रहा है। इनमें से सभी टीके ऐसे नहीं हैं जिन्हें -80 डिग्री सेल्सियस पर स्टोर करने की जरूरत है। लेकिन स्टोरेज कंपनियों की कोशिश है कि चाहे जैसी भी वैक्सीन बने उसे लोगों तक पहुंचाने में स्टोरेज की कमी के कारण देर नहीं होनी चाहिए।



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