
हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास का कृष्णपक्ष पितरों की पूजा के लिए श्रेष्ठ माना गया है। क्योंकि ग्रंथों के अनुसार मनुष्य का एक महीना पितरों का एक दिन-रात होता है। इसमें कृष्णपक्ष को पितरों का दिन और शुक्लपक्ष को रात्रि बताया गया है। शास्त्रों में दक्षिण दिशा को पितरों की दिशा माना गया है। वहीं चंद्रलोक में पितरों वास माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार अश्विन माह के कृष्णपक्ष में चंद्रमा पृथ्वी के करीब आ जाता है। इसलिए इन दिनों में पितरों के लिए श्राद्ध और तर्पण का विधान है।
- शास्त्रों के अनुसार, दक्षिण दिशा में चंद्रमा के ऊपर की कक्षा में पितृलोक की स्थिति है। इस दिशा को यम की भी दिशा माना गया है। इसलिए दक्षिण दिशा में पितरों का अनुष्ठान किया जाता है। रामायण में उल्लेख है कि जब दशरथ की मृत्यु हुई थी, तो भगवान राम ने स्वप्न में उन्हें दक्षिण दिशा की तरफ जाते हुए देखा था।
तर्पण और श्राद्ध कर्म के लिए कब है श्रेष्ठ समय और पितरों से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें
- पितृ शांति के लिए तर्पण का सही समय कुतुपकाल यानी दिन का आठवां मुहूर्त होता है। जो कि दोपहर करीब साढ़े 12 से साढ़े 12 तक होता है। इस दौरान किए गए जल से किए तर्पण के द्वारा पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
- कुतुपकाल में किया गया श्राद्ध कर्म शुभ और फलदायी माना जाता है। इस समय किए श्राद्धकर्म से पितर तृप्त होते हैं।
- माना जाता है कि कुतुपकाल में पितरों का मुख पश्चिम की ओर हो जाता है। इससे पितर अपने वंशजों द्वारा श्रद्धा से भोग लगाए कव्य बिना किसी कठिनाई के ग्रहण करते हैं।
- इसलिए इस समय पितृ कार्य करने के साथ पितरों की प्रसन्नता के लिए पितृ स्त्रोत का पाठ भी करना चाहिए।
- पितरों की भक्ति से मनुष्य को पुष्टि, आयु, वीर्य और धन की प्राप्ति होती है।
- ब्रह्माजी, पुलस्त्य, वसिष्ठ, पुलह, अंगिरा, क्रतु और महर्षि कश्यप- ये सात ऋषि महान योगेश्वर और पितर माने गए हैं।
- अग्नि में हवन करने के बाद जो पितरों के निमित्त पिंडदान दिया जाता है, उसे ब्रह्मराक्षस भी दूषित नहीं करते। श्राद्ध में अग्निदेव को उपस्थित देखकर राक्षस वहां से भाग जाते हैं।
- सबसे पहले पिता को, उनके बाद दादा को उसके बाद परदादा को पिंड देना चाहिए। यही श्राद्ध की विधि है।
- प्रत्येक पिंड देते समय एकाग्रचित्त होकर गायत्री मंत्र का जाप तथा सोमाय पितृमते स्वाहा का उच्चारण करना चाहिए।
- तर्पण करते समय पिता, दादा और परदादा आदि के नाम का स्पष्ट उच्चारण करना चाहिए।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar
via