श्रीकृष्ण और कुंती का प्रसंग, जीवन में दुखों का भी है महत्व, कुंती ने श्रीकृष्ण से उपहार में मांगे थे दुख - ucnews.in

शनिवार, 26 सितंबर 2020

श्रीकृष्ण और कुंती का प्रसंग, जीवन में दुखों का भी है महत्व, कुंती ने श्रीकृष्ण से उपहार में मांगे थे दुख

महाभारत कौरव और पांडवों का युद्ध खत्म हो चुका था। पूरा कौरव वंश का नाश हो गया था। धृतराष्ट्र और गांधारी जीवित थे। वे पांडवों के साथ रहने लगे थे। युधिष्ठिर राजा बन गए थे। जब पांडवों के परिवार में सबकुछ ठीक हो गया तो श्रीकृष्ण ने द्वारिका लौट रहे थे।

सभी पांडवों श्रीकृष्ण से असीमित प्रेम करते थे। श्रीकृष्ण द्वारिका जा रहे थे, इस बात से सभी दुखी थे। युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल-सहदेव, द्रौपदी और कुंती श्रीकृष्ण को विदा करने अपने नगर की सीमा तक पहुंचे थे।

श्रीकृष्ण भी पांडवों से बहुत प्रेम करते थे। वे भी लौटते समय प्रिय लोगों को मनचाहा उपहार दे रहे थे। भगवान एक-एक करके सभी से मिल रहे थे। उपहार देकर विदा ले रहे थे। अंत में श्रीकृष्ण पांडवों की माता यानी अपनी बुआ कुंती के पास पहुंचे।

कुंती बहुत उदास थी। श्रीकृष्ण ने कुंती से कहा कि बुआ आज तक आपने मुझसे खुद के लिए कुछ नहीं मांगा है। आज मनचाहा वर मांग लो। ये सुनकर कुंती की आंखों में आंसू आ गए। कुंती ने रोते हुए कहा कि प्रिय कृष्ण तुम मुझ कुछ देना ही चाहते हो तो दुख दे दो। ये बात सुनकर श्रीकृष्ण ने पूछा कि आप दुख क्यों मांग रही हैं?

कुंती ने कहा कि हमारे जीवन में जब-जब दुख आया है हम तुम्हारा स्मरण करते हैं। हमारे दुख के समय में तुम हमेशा साथ रहते हो। आज सब ठीक हो गया तो तुम जा रहे हो। मेरे जीवन दुख रहेंगे तो तुम्हारा ध्यान करती रहूंगी। सुख के समय ये संभव नहीं हो सकता है। इसीलिए मुझे दुख ही चाहिए।

प्रसंग की सीख

इस छोटे से प्रसंग की सीख यह है कि हमारे जीवन में दुखों का महत्व है। आमतौर लोग दुख के समय में ही भगवान को याद करते हैं। सुख आने पर लोग भगवान को भूल जाते हैं। जबकि, सुख हो या दुख भगवान का ध्यान हर पल करते रहना चाहिए। भगवान का ध्यान करते रहेंगे तो बुरा समय भी आसानी से निकल जाएगा। भगवान भी अपने सच्चे भक्तों पर उनके बुरे समय विशेष कृपा बनाए रखते हैं।



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