
अभी पितृ पक्ष चल रहा है। पितरों का ये पक्ष 17 सितंबर तक चलेगा। पितृ पक्ष के संबंध में महाभारत में भी उल्लेख है। ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु ने गरुड़ देव को पितृ पक्ष का महत्व बताया था। महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह और युधिष्ठिर के संवाद बताए गए हैं। इस पर्व में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया कि सबसे पहले महर्षि निमि को अत्रि मुनि ने श्राद्ध का ज्ञान दिया था। इसके बाद निमि ऋषि ने श्राद्ध किया और उनके बाद अन्य ऋषियों ने भी श्राद्ध कर्म शुरू कर दिए।
पितृ पक्ष में पितरों के साथ ही अग्निदेव भी अन्न ग्रहण करते हैं। इस संबंध में मान्यता है कि अग्निदेव के साथ भोजन करने पर पितर देवता जल्दी तृप्त हो जाते हैं। इसीलिए पितृ पक्ष में धूप-ध्यान करते समय जलते हुए कंडे पर ही पितरों के लिए भोजन अर्पित किया जाता है।
पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण का महत्व
पितृ पक्ष में मृत पूर्वजों को श्रद्धा से याद करना ही श्राद्ध कहलाता है। पिंडदान करने का मतलब ये है कि हम पितरों के लिए भोजन दान कर रहे हैं। तर्पण करने का अर्थ यह है कि हम जल का दान कर रहे हैं। इस तरह पितृ पक्ष में इन तीनों कामों का महत्व है।
पितृ पक्ष से जुड़ी कर्ण और इंद्र की कथा
पितृ पक्ष से जुड़ी कर्ण की भी एक कथा प्रचलित है। कर्ण की मृत्यु के बाद उनकी आत्मा स्वर्ग पहुंची तो आत्मा को खाने के लिए बहुत सारा सोना और गहने दिए गए। कर्ण की आत्मा ने देवराज इंद्र से पूछा कि उन्हें भोजन में सोना क्यों दिया जा रहा है?
इंद्रदेव ने कर्ण से कहा कि तुमने जीवनभर सिर्फ सोना ही दान दिया है। कभी भी अपने पूर्वजों को खाना दान नहीं किया। इसके बाद कर्ण को पितृ पक्ष के 16 दिनों में धरती पर वापस भेजा गया, जहां उन्होंने अपने पूर्वजों को याद करते हुए पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण किया।
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