
हिंदू पंचांग के मुताबिक, आश्विन महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के पद्मनाभ रूप की पूजा करने का भी विधान है। इस दिन व्रत और पूजा से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को इस एकादशी के बारे में बताया था। इस बार ये एकादशी व्रत 27 अक्टूबर, मंगलवार को है।
व्रत की विधि
1. इस व्रत का पालन दशमी तिथि (26 अक्टूबर, सोमवार) के दिन से ही करना चाहिए। दशमी तिथि पर सात तरह के धान (गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर की दाल) नहीं खानी चाहिए, क्योंकि इनकी पूजा एकादशी के दिन की जाती है।
2. कोशिश करनी चाहिए दशमी तिथि और एकादशी तिथि दोनों ही दिनों में कम से कम बोलना चाहिए। दशमी तिथि को भोजन में तामसिक चीजें नहीं खानी चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
3. एकादशी तिथि पर सुबह उठकर नहाने के बाद व्रत का संकल्प लें। श्रद्धा के मुताबिक ही एक समय फलाहार या फिर बिना भोजन का संकल्प लेना चाहिए।
4. संकल्प लेने के बाद घट स्थापना की जाती है और उस पर विष्णुजी की मूर्ति रखी जाती है। इस व्रत को करने वाले को विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए।
5. इस व्रत का समापन द्वादशी तिथि (28 अक्टूबर, बुधवार) की सुबह ब्राह्मणों को अन्न का दान और दक्षिणा देने के बाद होता है।
महत्व
धर्म ग्रंथों के मुताबिक इस एकादशी पर शेषनाग पर शयन करने वाले श्रीविष्णु को नमस्कार करने से कठिन तप का फल मिल जाता है। साथ ही यमलोक के दुख नहीं भोगने पड़ते हैं। इस एकादशी पर व्रत करने वाले के मातृपक्ष के दस और पितृपक्ष के दस पितरों को विष्णु लोक मिल जाता है।
एकादशी व्रत की कथा
- विंध्य पर्वत पर क्रोधन नाम का एक बहेलिया रहता था। वो बहुत क्रूर था। उसका पूरा जीवन पाप करने में ही बीता।
- जब उसका आखिरी समय आया तो वो मृत्यु के डर से महर्षि अंगिरा के आश्रम में पहुंचा और बोला, हे ऋषि, मैंने जीवन भर पाप ही किए हैं। मुझे ऐसा उपाय बताएं, जिससे मेरे सारे पाप मिट जाएं और मोक्ष मिल जाए।
- उसके कहने पर महर्षि अंगिरा ने उसे पापांकुशा एकादशी का व्रत बताया।
- महर्षि अंगिरा के कहे मुताबिक बहेलिए ने श्रद्धा के साथ ये व्रत किया और उसे पापों से छुटकारा मिल गया।
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