जो लोग दुख आने पर दुखी नहीं होते, सुख आने पर जिनके मन में किसी तरह का खुशी नहीं होती है, वे लोग स्थिर बुद्धि वाले होते हैं - ucnews.in

शनिवार, 3 अक्टूबर 2020

जो लोग दुख आने पर दुखी नहीं होते, सुख आने पर जिनके मन में किसी तरह का खुशी नहीं होती है, वे लोग स्थिर बुद्धि वाले होते हैं

महाभारत में कौरव और पांडवों की सेनाएं युद्ध के लिए आमने-सामने खड़ी थीं। दोनों ही सेनाओं में बड़े-बड़े योद्धा थे। कौरव पक्ष में भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, दुर्योधन, अश्वथामा आदि योद्धाओं को देखकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि मैं इन लोगों से युद्ध नहीं कर सकता हूं।

अर्जुन ने कहा कि मैं ये नहीं जानता कि हमारे लिए युद्ध करना और युद्ध न करना, इन दोनों में से कौन-सा विकल्प ज्यादा अच्छा है। मुझे ये भी नहीं मालूम कि हम उन्हें जीतेंगे ये वे हमें जीतेंगे। मेरे सामने खड़े इन सभी योद्धाओं को मारकर मैं जीना भी नहीं चाहता। ये सभी धृतराष्ट्र के संबंधी ही हमारे सामने खड़े हैं।

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।। (श्रीमद् भगवद्गीता 2.47)

जब अर्जुन ने युद्ध करने से मना कर दिया, तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन, सिर्फ कर्म करने में तुम्हारा अधिकार है? कर्मों का फल क्या होगा, ये तुम्हारे अधिकार में नहीं है। तुम्हें फल के बारे में सोचकर कोई कर्म नहीं करना चाहिए। तुम्हें अकर्म भी नहीं रहना है। तुम्हें सिर्फ अपना कर्तव्य पूरा करना चाहिए।

योगस्थ: कुरु कर्माणि संग त्यक्तवा धनंजय।

सिद्धय-सिद्धयो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।। (श्रीमद् भगवद्गीता 2.47)

श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे धनंजय। कर्म न करने का विचार छोड़ दो। तुम सभी मोह छोड़कर समभाव रहो। समभाव होकर भी तुम कर्म करो। ये समभाव भी योग ही कहलाता है।

स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव।

स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम्।। (श्रीमद् भगवद्गीता 2.54)

अर्जुन ने कहा कि हे केशव, परमात्मा की भक्ति में स्थिर बुद्धि वाले व्यक्ति के क्या लक्षण होते हैं?

प्रजहाति यदा कामान् सर्वान् पार्थ मनोगतान्।

आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते।। (श्रीमद् भगवद्गीता 2.55)

श्री कृष्ण ने कहा कि हे अर्जुन, जो साधक सभी इच्छाओं का त्याग कर देता है और खुद से ही संतुष्ट रहता है, उस व्यक्ति को स्थिर बुद्धि वाला कहा जाता है।

दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः।

वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते।। (श्रीमद् भगवद्गीता 2.56)

जो लोग दुख आने पर दुखी नहीं होते, सुख आने पर जिनके मन में किसी तरह का मोह या खुशी नहीं होती है, वे स्थिर बुद्धि वाले लोग होते हैं। जो लोग राग, भय और क्रोध से हमेशा दूर रहता है, वही व्यक्ति स्थिर बुद्धि वाला होता है।



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