
श्रीरामचरित मानस के महत्वपूर्ण पात्रों में से एक जांबवंत भी हैं। जांबवंत का जिक्र सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग से संबंधित कथाओं में भी मिलता है। जांबवंत ने रावण के साथ युद्ध में श्रीराम का साथ दिया था। अगले युग में यानी द्वापर युग में श्रीकृष्ण के साथ उन्होंने युद्ध किया था। जानिए जांबवंत जुड़ी खास बातें...
सतयुग और त्रेतायुग में जांबवंत
श्रीराम का अवतार त्रेतायुग में हुआ था। श्रीरामचरित मानस के किष्किंधा कांड के अंत में जब सीता की खोज में लंका जाने की बात चल रही थी। तब अंगद, जांबवंत इस विचार कर रहे थे कि लंका कौन जाएगा?
उस समय जांबवंत ने कहा था कि मैं अब बूढ़ा हो गया हूं। भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया था, तब मैं जवान था, मुझमें बहुत बल था। वामन देव ने अपने शरीर का आकार इतना बढ़ा लिया था कि उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। उस समय दो घड़ी में ही मैंने भगवान की सात परिक्रमाएं कर ली थीं। ये घटना त्रेतायुग से पहले के सतयुग की थी।
त्रेतायुग में हनुमानजी को उनकी शक्तियां याद दिलाई। रावण के साथ युद्ध में जांबवंत भी श्रीराम के साथ रहे।
द्वापर युग में जांबवंत
द्वापर युग में स्यमंतक मणि की खोज करते हुए श्रीकृष्ण जांबवंत के पास पहुंच गए थे। उस समय जांबवंत ने मणि देने से मना कर दिया था। इसके बाद श्रीकृष्ण और जांबवंत का युद्ध हुआ, जिसमें जांबवंत पराजित हुए। तब श्रीकृष्ण ने जांबवंत को बताया कि वे ही भगवान विष्णु के अवतार हैं और त्रेतायुग में श्रीराम के रूप में अवतरित हुए थे। इसके बाद जांबवंत ने श्रीकृष्ण ने अपनी पुत्री जांबवंती का विवाह करवाया और स्यमंतक मणि भी दे दी थी। मान्यता है कि जांबवंत कलियुग में जीवित हैं।
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