
इस समय काफी लोग मानसिक तनाव का सामना कर रहे हैं। तनाव की वजह से काम में मन नहीं लग पाता है। मन की शांति सुख-सुविधाओं और धन से नहीं मिलती है। इसके लिए इच्छाओं का त्याग करना पड़ता है। जब तक इच्छाएं रहेंगी, मन अशांत ही रहेगा। इस संबंध में एक लोक कथा प्रचलित है। जानिए ये कथा...
पुराने समय एक राजा दान-पुण्य करते थे, लेकिन उन्हें अपने अच्छे कामों पर घमंड भी था। राजा की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी। रोज सुबह महल के बाहर जरूरतमंद लोगों की लाइन लगी रहती थी। एक दिन राजा के पास एक संत पहुंचे।
राजा ने संत से कहा कि गुरुदेव आप जो चाहें मुझसे मांग सकते हैं। मैं आपकी सभी इच्छाएं पूरी कर सकता हूं। संत को समझ आ गया कि राजा को अहंकार हो गया है। उन्होंने कहा कि मेरे इस कमंडल को स्वर्ण मुद्राओं से भर दो।
राजा ने कमंडल देखा तो वह छोटा दिख रहा था। राजा ने कहा कि ये तो बहुत छोटा सा काम है। मैं अभी इसे भर देता हूं। राजा ने अपने पास से मुद्राओं की थैली निकाली और कमंडल में डाल दी। लेकिन, मुद्राएं कमंडल में जाते ही गायब हो गईं।
राजा ने कोषाध्यक्ष से और मुद्राएं मंगवाकर उस कमंडल में डालीं तो वे भी गायब हो गईं। ये देखकर राजा हैरान था। राजा को अपना वचन पूरा करना था, इसलिए उसने अपने खजाने से और मुद्राएं मंगवाईं।
राजा जैसे-जैसे स्वर्ण मुद्राएं उस कमंडल में डाल रहा था। मुद्राएं गायब हो रही थीं, वह कमंडल खाली ही था। राजा ने हाथ जोड़कर हार मान ली और कहा कि कृपया इस कमंडल का रहस्य समझाएं। इतना धन डालने के बाद भी ये भरा क्यों नहीं?
संत बोलें कि राजन् ये कमंडल मन का प्रतीक है। जिस तरह हमारा मन सुख-सुविधाएं, धन, पद और ज्ञान से कभी भरता नहीं है, ठीक उसी तरह ये कमंडल भी कभी भर नहीं सकता। मन की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होती हैं। मन शांति के लिए हमें हम हर हाल में संतुष्ट रहना चाहिए। कभी भी घमंड न करें। इच्छाओं और घमंड का त्याग करेंगे तो मन शांत रहेगा।
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