
छठ महज एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, इसमें विज्ञान भी छुपा है। व्रत करने वाले शारीरिक और मानसिक रूप से इसके लिए तैयार होते हैं। छठ पूजा के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली चीजें शरद ऋतु को अनुसार ही होती हैं। पद्मश्री पुरूस्कार पाने वाले हृदयरोग विशेषज्ञ डॉ. के.के.अग्रवाल के मुताबिक कार्तिक महीने में प्रजनन शक्ति बढ़ती है और गर्भवती महिलाओं के लिए विटामिन-डी बहुत जरूरी होता है। इसलिए सूर्य पूजा की परंपरा बनाई गई है।
वैज्ञानिक और औषधीय महत्व
सूर्य को जल देने की बात करें तो इसके पीछे रंगों का विज्ञान छुपा है। इंसान के शरीर में रंगों का संतुलन बिगड़ने से भी कई बीमारियों के शिकार होने का खतरा होता है। प्रिज्म के सिद्धांत के मुताबिक सुबह सूर्यदेव को जल चढ़ाते समय शरीर पर पड़ने वाले प्रकाश से ये रंग संतुलित हो जाते हैं। जिससे रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ जाती है। त्वचा के रोग कम होते हैं। सूर्य की रोशनी से मिलने वाला विटामिन डी शरीर में पूरा होता है।
वैज्ञानिक नजरिये से देखें तो षष्ठी के दिन विशेष खगोलीय बदलाव होता है। तब सूर्य की परा बैगनी किरणें असामान्य रूप से एकत्र होती हैं और इनके दुष्प्रभावों से बचने के लिए सूर्य की ऊषा और प्रत्यूषा के रहते जल में खड़े रहकर छठ व्रत किया जाता है।
छठ के ज्यादातर प्रसाद में होता है कैल्शियम
चतुर्थी को लौकी और भात का सेवन करना शरीर को व्रत के अनुकूल तैयार करने की प्रक्रिया का हिस्सा है। पंचमी को निर्जला व्रत के बाद गन्ने के रस व गुड़ से बनी खीर पर्याप्त ग्लूकोज की मात्रा सृजित करती है। छठ में बनाए जाने वाले अधिकतर प्रसाद में कैल्शियम की भारी मात्रा मौजूद होती है। भूखे रहने के दौरान अथवा उपवास की स्थिति में मानव शरीर नैचुरल कैल्शियम का ज्यादा उपभोग करता है। प्रकृति में सबसे ज्यादा विटामिन-डी सूर्योदय और सूर्यास्त के समय होता है। अर्घ्य का समय भी यही है। अदरक व गुड़ खाकर पर्व समाप्त किया जाता है। साइंस के अनुसार उपवास के बाद भारी भोजन हानिकारक है।
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