
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कई ऐसी बातें बताई हैं जिनको समझकर जीवन को सुखी और सफल बनाया जा सकता है। श्रीकृष्ण ने गीता में कर्म के अलावा ये भी बताया है कि इंसान को अपने स्वभाव के मुताबिक ही आजीविका यानी काम चुनना चाहिए। सेहत के बारे में उन्होंने अच्छी दिनचर्या यानी हेल्दी रूटीन बताया है। वहीं, शिक्षा और ज्ञान के बीच का फर्क समझाया है। इसके अलावा गीता के श्लोक में ये भी बताया है कि खुद को खुश कैसे रखना चाहिए।
कर्म: क्यों जरूरी, यह कैसा होना चाहिए?
तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्।।
अर्थ - कृष्ण कहते हैं- अर्जुन तुम मेरा चिंतन करो। लेकिन अपना कर्म करते रहो। इसमें श्रीकृष्ण का कहना है कि अपना काम छोड़कर सिर्फ भगवान का नाम नहीं लेना चाहिए। गीता में लिखा है बिना कर्म के जीवन बना नहीं रह सकता। कर्म से मनुष्य को जो सिद्धि मिलती है, वो तो संन्यास से भी नहीं मिल सकती।
कर्तव्य: किस सोच के साथ करें काम
योगस्थ: कुरु कर्माणि संग त्यक्तवा धनंजय।
सिद्धय-सिद्धयो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।
अर्थ - हे धनंजय (अर्जुन)। कर्म न करने का आग्रह त्यागकर, यश-अपयश के बारे में समबुद्धि होकर योगयुक्त कर्म करना चाहिए। यानी श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि किसी भी काम को न करने का विचार मन में नहीं लाना चाहिए। किसी भी काम में फायदा है या नहीं इस बारे में नहीं सोचना चाहिए। बस समय और हालात को ध्यान में रखते हुए क्या सही, क्या गलत है ये सोचकर अपना कर्तव्य पूरा करना चाहिए। क्योंकि इसे ही धर्म कहते हैं। धर्म का अर्थ होता है कर्तव्य। अपने कर्तव्य को पूरा करने में कभी यश-अपयश और फायदे-नुकसान के बारे में नहीं सोचना चाहिए। बुद्धि को सिर्फ अपने कर्तव्य पर टिकाकर काम करना चाहिए।
आजीविका: काम कैसा चुनना चाहिए?
सदृशं चेष्टते स्वस्या: प्रकृतेर्ज्ञानवानपि।
प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रह: किं करिष्यति।।
अर्थ - हर इंसान अपने स्वभाव के मुताबिक ही काम करता है। उसी के हिसाब से सोचता है। हर इंसान का स्वभाव पुराने पाप और पुण्य कर्मों से ही बनता है। इसलिए अच्छे काम करते हुए अपने मन और स्वभाव को पवित्र बनाना चाहिए। इसी के मुताबिक काम चुनना चाहिए। जो इंसान अपने स्वभाव को समझकर कोई काम करता है वो ही सफल होता है। वो काम जिसमें, उसे खुशी मिलती हो। हम अपनी प्रकृति और क्षमता के अनुसार काम करें। अपने अस्तित्व की जरूरत के अनुसार काम करें। गीता में यह भी लिखा है कि जो काम आपके हाथ में इस समय है, यानी वर्तमान कर्म उससे अच्छा कुछ नहीं है। उसे पूर्ण करो।
व्यवहार: लोगों से कैसा व्यवहार करना चाहिए?
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
मम व्रत्मा नुवर्त न्ते मनुष्या पार्थ सर्व श:।।
अर्थ - हे अर्जुन। जो मनुष्य मुझे जिस प्रकार भजता है यानी जिस इच्छा से मुझे याद करता है, उसी के मुताबिक मैं उसे फल देता हूं। इससे ये सीखना चाहिए कि संसार में जो इंसान जैसा व्यवहार दूसरों के लिए करता है, उसे भी वैसा ही व्यवहार दूसरों से मिलता है। जो लोग मोक्ष के लिए भगवान को याद करते हैं, उन्हें मोक्ष मिलता है। जो किसी ओर इच्छा से भगवान का स्मरण करते हैं, उनकी वो इच्छाएं भी पूरी हो जाती है।
ज्ञान और सीख: शिक्षा कैसे और किससे लें?
तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिन:।।
अर्थ - शिक्षा और ज्ञान उसी को मिलता है, जिसमें जिज्ञासा हो। सम्मान और विनयशीलता से सवाल पूछने से ज्ञान मिलता है। जो जानकार हैं वे कोई भी बात तभी बताएंगे जब आप सवाल करेंगे। किताबों में लिखी या सुनी बातों को तर्क पर तौलना जरूरी है। जो शास्त्रों में लिखा, जो गुरु से सीखा है और जो अनुभव रहा है, इन तीनों में सही तालमेल से ज्ञान मिलता है।
सेहत: किस तरह की दिनचर्या होनी चाहिए?
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दु:खहा।।
अर्थ - जो सही मात्रा में भोजन करने वाला और सही समय पर नींद लेने वाला है, जिसकी दिनचर्या नियमित है, उस व्यक्ति में योग यानी अनुशासन आ जाता है। ऐसा व्यक्ति दुखों और रोगों से दूर रहता है। गीता में लिखा है सात्विक भोजन सेहत के लिए सर्वोत्तम है। ये जीवन, प्राणशक्ति, बल, आनंद और उल्लास बढ़ाता है।
खुशी: सुख-दुख को कैसे समझे?
मास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदु: खदा:।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।।
अर्थ - सुख-दुख का आना और चले जाना सर्दी-गर्मी के आने-जाने के समान है। सहन करना सीखें। गीता में लिखा है- जिसने बुरी इच्छाओं और लालच को छोड़ दिया है, उसे शान्ति मिलती है। कोई भी इच्छाओं से मुक्त नहीं हो सकता। पर इच्छा की गुणवत्ता बदलनी होती है।
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