
महाभारत में एक बार भीम को अपनी ताकत का घमंड हो गया था। उस समय हनुमानजी ने भीम का अहंकार तोड़ा था। जहां भीम और हनुमानजी की भेंट हुई थी, वह जगह उत्तराखंड में बद्रीनाथ के पास आज भी स्थित है। इस जगह को हनुमान चट्टी के नाम से जाना जाता है। हनुमान चट्टी बद्रीनाथ मंदिर से करीब 12 किमी, जोशी मठ से करीब 34 किमी और ऋषिकेश से करीब 285 किमी दूर स्थित है। देहरादून का एयरपोर्ट यहां से करीब 315 किमी दूर है।
बद्रीनाथ धाम के धर्माधिकारी भुवनचंद उनियाल ने बताया कि शीत ऋतु में भगवान बद्रीनाथ मंदिर और हनुमान चट्टी मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। बद्रीनाथ आने वाले सभी दर्शनार्थी जो हनुमान चट्टी के बारे में जानते हैं, वे बद्रीनाथ मंदिर जाने से पहले हनुमानजी के दर्शन जरूर करते हैं।
उत्तराखंड सरकार ने यहां के चारधाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री मंदिर में अन्य राज्यों के दर्शनार्थियों के लिए भी खोल दिए हैं। अब यहां कोई भी दर्शन के लिए पहुंच सकता है। दर्शनार्थियों को कोरोना महामारी से जुड़े जरूरी नियमों का पालन करना होगा।

ये है भीम और हनुमानजी से जुड़ी महाभारत की कथा
महाभारत में पांडव द्रौपदी के साथ वनवास का समय व्यतीत कर रहे थे। वे उस समय बद्रीनाथ क्षेत्र में ही रह रहे थे। एक दिन द्रौपदी ने देखा कि एक ब्रह्मकमल गंगा में बहता हुआ आ रहा है। तब द्रौपदी ने भीम से कुछ और ब्रह्मकमल लेकर आने की बात कही। महाभारत में वनपर्व के अध्याय 146 के श्लोक 7 में लिखा है कि-
यदि तेऽहं प्रिया पार्थ बहूनीमान्युपाहर।
तान्यहं नेतुमिच्छामि काम्यकं पुनराश्रमम्।।
अर्थ- महाबली भीम उस ब्रह्मकमल पुष्प को लेने के लिए बद्रीवन में प्रवेश करते हैं और उस समय रास्ते में एक वृद्ध वानर को लेटा हुआ था। वानर की पूंछ से रास्ता रुका हुआ था। भीम उस वानर को रास्ते से हटने के लिए कहा।
प्रसीद नास्ति मे शक्तिरूत्थातुं जरयानघ।
ममानुकम्पया त्वेतत् पुच्छमुत्सार्य गम्यताम्।।
अर्थ- तब वानर ने कहा कि बुढ़ापे की वजह से मुझमें उठने की शक्ति नहीं है। इसलिए मुझ पर दया करके इस पूंछ को तुम ही हटा दो और चले जाओ।
इसके बाद भीम बहुत कोशिश की, लेकिन वह पूंछ को हिला नहीं सका। तब भीम समझ आ गया कि ये कोई सामान्य वानर नहीं है। तब भीम ने वानर से अपने असली स्वरूप में आने की प्रार्थना की। तब हनुमानजी अपने वास्तविक स्वरूप में प्रकट हुए और भीम को घमंड से बचने की सीख दी।
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