
संतुष्टि के बिना मन को शांति नहीं मिल सकती है। जहां असंतुष्टि रहती है, वहां हमेशा ही अशांति रहती है। अशांत व्यक्ति के मन में कई प्रश्न होते हैं, अगर कोई व्यक्ति उन प्रश्नों के उत्तर बताता भी है तो अशांत मन इन उत्तरों को सुनता नहीं। ऐसे लोग कभी सुखी नहीं रह पाते हैं।
जो लोग शांति चाहते हैं, उन्हें अपने मन से सभी प्रश्नों को निकाल देना चाहिए। भगवान पर भरोसा रखकर अपने कर्तव्य पूरे करना चाहिए। कर्म करते समय फल क्या मिलेगा, ये भी नहीं सोचना चाहिए। महाभारत में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।
युद्ध से पहले ही अर्जुन ने शस्त्र रख दिए थे और वे युद्ध करना ही नहीं चाहते थे। तब अर्जुन के मन को शांत करने के लिए श्रीकृष्ण ने कर्मों का महत्व बताया था। उस समय अर्जुन ने कई प्रश्न श्रीकृष्ण से पूछे थे। उत्तर देने के लिए सामने स्वयं भगवान श्रीकृष्ण थे, अर्जुन के मन में प्रश्न ही प्रश्न थे। ये प्रश्न ही अर्जुन की अशांति का कारण थे।
अशांत व्यक्ति के मन में प्रश्न वैसे ही रहते हैं, जैसे वृक्षों पर पत्ते लगे रहते हैं। पुराने पत्ते हटते और नए पत्ते आ जाते हैं। ठीक जैसे ही व्यक्ति के मन में नित नए प्रश्न पनपते हैं।
आध्यात्मिक गुरु ओशो ने अपने गीता दर्शन में लिखा है कि अर्जुन के प्रश्नों का कोई अंत नहीं है। किसी के भी प्रश्नों का कोई अंत नहीं होता है। जहां श्रीकृष्ण जैसा उत्तर देने वाला मौजूद हो तो प्रश्न उठते ही चले जाते हैं।
इन्हीं प्रश्नों की वजह से अर्जुन श्रीकृष्ण को भी देख पाने में समर्थ नहीं थे। इन्हीं प्रश्नों की वजह से अर्जुन श्रीकृष्ण के उत्तर को भी नहीं सुन नहीं पा रहे थे।
जिस व्यक्ति के मन में प्रश्न ही प्रश्न भरे हों, वह उत्तर को नहीं समझ पाता है। क्योंकि व्यक्ति उत्तर नहीं सुनता है, अपने ही प्रश्नों में उलझा रहता है।
जिन लोगों के मन में प्रश्न नहीं है, वे ही शांत रहते हैं। ऐसे ही लोग जीवन में सुख-शांति प्राप्त कर पाते हैं। मन में प्रश्न रहेंगे तो हम ध्यान भी नहीं कर सकते हैं। इसीलिए अपने मन से प्रश्नों को निकाल देना चाहिए।
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