
वही परिवार सुखी और समृद्ध हो सकता है जिसका हर सदस्य अपना कर्तव्य पूरी ईमानदारी से निभाता है। यह भी संभव है कि परिवार का कोई सदस्य अपने हिस्से की जिम्मेदारी न निभा पाए ऐसे में दूसरों को धैर्य और उदारता से काम लेना चाहिए। परिवार की खुशहाली के लिए हक पाने के लिए लडऩे की बजाय अपने कर्तव्य को निभाने में ही ध्यान रखना चाहिए।
कर्तव्य और अधिकार में से व्यक्ति को पहले किसे चुनना चाहिए इसका बेहतरीन उदाहरण देखना हो तो हमें रामचरितमानस में चलना चाहिए। परिवार के हर सदस्य के लिए अपना कर्तव्य पहले और अधिकार बाद में है, यह बात रामायण के प्रसंग से बहुत बेहतर तरीके से समझी जा सकती है।
राम का जीवन आज हजारों वर्षों बाद भी लोगों के लिये प्रेरणा और प्रोत्साहन का जरिया बना हुआ है। वही परिवार लम्बे समय तक सुख-समृद्धि के साथ फल-फूल सकता है जिसके सदस्यों के बीच अधिकारों व सुविधाओं की छीना-झपटी होने की बजाय कर्तव्यों को पूरा करने का समर्पण भाव होता है। घर-परिवार में माता-पिता या बड़ों के प्रति क्या कर्तव्य होता है।
दशरथ के बाद राजा की कुर्सी मिलने का जायज अधिकार राम के पास था। लेकि न राजतिलक होने की बजाय एकाएक 14 वर्षों के लिये वन में रहने की आज्ञा पाकर भी राम के चेहरे पर शिकन तक नहीं आई। वन जाने की आज्ञा पाकर राम ने उसे अपना प्रमुख कर्तव्य माना। पिता की आज्ञा को ही अपना अहम् फर्ज मानकर राम ने कुछ इस तरह का जवाब दिया-
''आयसु पालि जनम फलु पाई। ऐहउँ बेगिहिं होउ रजाई।।"
राम अपने पिता दशरथ से कहते हैं कि आपकी आज्ञा पालन करके मैं अपने इस मनुष्य जन्म का फल पाकर जल्दी ही लौट आउंगा। इसलिये आप बड़ी कृपा करके मुझे वन जाने की आज्ञा दीजिए।
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