मां दुर्गा के पहले स्वरूप माता शैलपुत्री की आराधना से मिलेगी हिमालय सी शक्ति और स्थिरता - ucnews.in

शनिवार, 17 अक्टूबर 2020

मां दुर्गा के पहले स्वरूप माता शैलपुत्री की आराधना से मिलेगी हिमालय सी शक्ति और स्थिरता

आज आश्विन माह के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा है। कलश-स्थापना के बाद मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री का पूजन किया जाएगा। शैल का अर्थ है हिमालय और पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। हिमालय हमारी शक्ति, दृढ़ता, आधार व स्थिरता का प्रतीक है। मां शैलपुत्री को पार्वती स्वरूप में भगवान शंकर की पत्नी के रूप में भी जाना जाता है। नवरात्रि के प्रथम दिन योगीजन अपनी शक्ति मूलाधार में स्थित करते हैं और योग साधना करते हैं।

वाहन व स्वरूप
वृषभ शैलपुत्री माता का वाहन है। इसलिए इन्हें वृषभारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल है।

महत्त्व
हमारे जीवन प्रबंधन में दृढ़ता, स्थिरता व आधार का महत्त्व सर्वप्रथम है। अत: नवरात्रि के पहले दिन स्थायित्व व शक्तिमान होने के लिए माता शैलपुत्री से प्रार्थना की जाती है। माता शैलपुत्री की आराधना करने से जीवन में स्थिरता आती है। हिमालय की पुत्री होने से यह देवी प्रकृति स्वरूपा भी है। स्त्रियों के लिए उनकी पूजा करना ही मंगलकारी है।

हिमालय की इस बेटी ने खुद 8 नौकरियां छोड़कर बेरोजगारों को दिखाई राह, एक बार 20 हजार रुपए लगाओ, 4 से 5 हजार कमाओ

नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की आराधना होती है। मां दुर्गा के इस स्वरूप को नाम के अनुसार हिमालय की बेटी (शैलपुत्री) भी कहा जाता है। शैलपुत्री की तरह हिमालय की कई ऐसी बेटियां हैं जिन्होंने दुनिया के सबसे ऊंचे शिखरों वाली इस पर्वतमाला का शीश गर्व से और ऊंचा कर दिया है। ऐसी ही एक बेटी हैं देहरादून की 30 वर्षीय दिव्या रावत। उन्हें मशरूम गर्ल भी कहते हैं।

एक ऐसे दौर में जब कोरोना महामारी के चलते बेरोजगार हुए लाखों युवा रोजगार की तलाश में हैं, दिव्या उनके लिए रोल मॉडल साबित हो रही हैं। अपने घर से दूर दिल्ली-एनसीआर में आठ नौकरियां बदलने के बाद वे अपने घर लौट गईं। बेहद कम लागत से मशरूम की इनोवेटिव खेती शुरू की और आज दिव्या करीब दो करोड़ रुपए सालाना का कारोबार करती हैं।

मूलत: उत्तराखंड के चमोली जिले की रहने वाली दिव्या के पिता तेज सिंह रावत सेना में अफसर थे। वह 12वीं कक्षा में ही थी, जब पिता का निधन हो गया। जीवन में उनके सामने तमाम चुनौतियां खड़ी हो गईं। बावजूद इसके 12वीं करने के बाद दिव्या ने नोएडा की एमिटी यूनिवर्सिटी से सोशलवर्क में बैचलर डिग्री ली। इसके बाद एक निजी कंपनी में 25 हजार पगार पर नौकरी की। फिर एक के बाद एक करीब 8 नौकरियां बदलीं, मगर इनके मन में तो कुछ और चल रहा था। वह अपनों के बीच ही कुछ अलग करना चाहती थीं, आखिर यह चाहत उन्हें देहरादून वापस ले गई।

2013 में देहरादून के मोथरोवाला गांव में एक कमरे में मशरूम की खेती शुरू कर दी। इसके लिए उन्होंने ट्रेनिंग ली और मात्र तीन लाख रुपए की लागत से काम शुरू किया। शुरुआत में उन्होंने 100 बैग मशरूम उगाए। धीरे-धीरे काम चल पड़ा। दिव्या की उगाई मशरूम की आपूर्ति दून की मंडी से लेकर दिल्ली की आजादपुर मंडी तक होती है। उनकी कंपनी के मशरूम प्रोडक्ट विदेश तक में बिक रहे हैं।

दिव्या ने बताया कि कोई भी आम इंसान 10 बाय 12 के एक कमरे से भी मशरूम की खेती शुरू सकता है। मशरूम की एक फसल करीब 2 महीने में तैयार होती है। इसकी शुरुआती लागत करीब 10-20 हजार रुपए आती है। एक कमरे में आप दो महीने के सभी खर्च निकालकर 4 से 5 हजार रुपए का मुनाफा निकाल सकते हैं।

2-3 लाख रुपए किलो बिकने वाले मशरूम
दिव्या की कंपनी का नाम सौम्य फूड प्राइवेट लिमिटेड है। उन्होंने 2016 में उन्होंने रिसर्च के लैब भी शुरू की, नाम है दिव्या स्पॉन लैब प्राइवेट लिमिटेड। उनके मशरूम प्लांट में साल भर मशरूम उगाया जाता है। इस प्लांट में सर्दियों के मौसम में बटन, सामान्य मौसम में ओएस्टर और गर्मियों में मिल्की मशरूम की खेती होती है। दिव्या हिमालय में पाए जाने वाली कीड़ा जड़ी की एक प्रजाति कार्डिसेफ मिलिटरीज की भी खेती करती हैं। यह बाजार में 2 से 3 लाख रुपए प्रति किलोग्राम बिकता है।

पलायन से खाली पड़े घरों के कमरों में खेती
दिव्या की कोशिशों से गढ़वाल और देहरादून में रोजगार की तलाश में दिल्ली जैसे बड़े शहरों की ओर पलायन से तमाम घरों में खाली पड़े कमरों में मशरूम उत्पादन और इसके लिए ट्रेनिंग सेंटर शुरू हो रहे हैं। सैकड़ों लोगों को रोजगार मिलना शुरू हो गया। मशरूम की खेती से आजीविका कमाने के अवसर पैदा करने, सतत विकास को बढ़ावा देने, महिलाओं को सशक्त बनाने और मशरूम की खेती में इनोवेशन करने के लिए उत्तराखंड सरकार ने अपना ब्रांड एंबेसडर बनाया है। यही नहीं 2017 में महिला दिवस के मौके पर तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी उन्हें सम्मानित किया था।

मिड-डे मील में शामिल हुआ मशरूम
दिव्या के प्रयासों के बाद केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने 26 सितंबर को मशरूम को मिड-डे मील का हिस्सा बनाने का फैसला लिया। शिक्षा मंत्रालय ने मशरूम के अलावा शहद को भी मिड-डे मील में शामिल किया है।

ट्रेनिंग टू ट्रेडिंग: स्टार्टअप के लिए सरकार से भी सस्ती ट्रेनिंग
दिव्या युवाओं को सरकारी ट्रेनिंग सेंटर से काफी कम फीस पर मशरूम की आधुनिक खेती करने की ट्रेनिंग दे रही हैं। उनका कहना है कि सरकारी सेंटर पर ट्रेनिंग की फीस पांच हजार रुपए है, जबकि उनके यहां तीन हजार रुपए। यहां हर मौसम में अलग-अलग मशरूम उगाने बल्कि उनके अच्छे बीज उत्पन्न करना सिखाया जाता है।

दिव्या अपने इंस्टीट्यूट में ब्रांडिंग, मार्केटिंग, बैंक लोन, सब्सिडी और अन्य वित्तीय मदद के लिए प्रोजेक्ट बनाना भी सिखाती हैं, हालांकि यह बेसिक ट्रेनिंग का हिस्सा नहीं। दिव्या ट्रेनिंग टू ट्रेडिंग कॉन्सेप्ट पर काम करते हुए उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, और हिमाचल प्रदेश समेत देश के अलग-अलग राज्यों तक पहुंच चुकी हैं।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
shardiya navratri 2020 first day of navratri maa shailputri and story of a Himalaya girl divya rawat who is giving employment to youngster


from Dainik Bhaskar
via

Share with your friends

Related Posts

Add your opinion
Disqus comments
Notification
This is just an example, you can fill it later with your own note.
Done