
कहानी- घटना तब की है, जब महाभारत में दुर्योधन की वजह से पांडवों को वन में रहना पड़ रहा था। उस समय एक दिन पांडवों के पास कौरव सैनिक आए और उन्होंने कहा, 'हमारे युवराज दुर्योधन को गंधर्व राजा ने बंदी बना लिया है। कर्ण मैदान छोड़कर भाग गए हैं। कृपया आप हमारी रक्षा कीजिए।'
भीम और अर्जुन ने सैनिकों की बात सुनी तो वे खुश हो गए। उन्होंने कहा कि अच्छा दुर्योधन की वजह से हम वनवास काट रहे हैं, आज उसे गंधर्व राजा ने बंदी बना लिया।
युधिष्ठिर ने भीम-अर्जुन को आदेश दिया, 'तुम दोनों जाओ और दुर्योधन की रक्षा करो, उसे कैद से मुक्त कराओ।'
दोनों भाइयों ने युधिष्ठिर से कहा, भैया ये कैसा आदेश है? दुर्योधन हमारा शत्रु है। वह हमारे लिए हमेशा परेशानियां बढ़ाता है, हमें मारने के लिए षड़यंत्र रचता रहता है, फिर भी आप उसकी मदद करने के लिए आदेश दे रहे हैं।'
युधिष्ठिर ने कहा, 'हम पांच भाई हैं और वे सौ भाई हैं। हमारा एक ही कुटुंब है। हमारे परिवार में मतभेद है, वो बात ठीक है, लेकिन अगर हमारी शत्रुता किसी बाहर वाले से है, तो हम 105 भाई हैं। अपनापन ही परिवार का धर्म है इसलिए हमें दुर्योधन की मदद करनी चाहिए।'
युधिष्ठिर का आदेश मिलने के बाद अर्जुन और भीम ने गंधर्वों से युद्ध करके दुर्योधन को उनकी कैद से आजाद कराया।
सीख - बाहरी लोगों से मुकाबला करते समय परिवार की एकता बनी रहनी चाहिए, यही अपनापन है। परिवार के लोगों में आपसी मतभेद हों, तो बात करके उन्हें निपटा लेना चाहिए। लेकिन, बाहरी लोगों के लिए पूरे परिवार को एक साथ रहना चाहिए।
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