
महाभारत युद्ध से पहले श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। श्रीकृष्ण कहते हैं कि व्यक्ति फल की इच्छा न करें और हमें समभाव रहते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। समभाव रहने के लिए और मन शांत रखने के लिए रोज ध्यान करना चाहिए।
श्रीमद् भगवद् गीता के छठे अध्याय के 11वें श्लोक में श्रीकृष्ण कहते हैं कि-
शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मनः।
नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम्।। (श्रीमद् भगवद् गीता 6.11)
व्यक्ति को ध्यान करने के लिए शुद्ध भूमि का चयन करना चाहिए। ऐसी जगह जो ज्यादा ऊंची न हो और ना ही ज्यादा नीची होनी चाहिए। समतल स्थान पर कुश या वस्त्र के बने आसन पर बैठना चाहिए। वातावरण भी साफ और शांत होना चाहिए।
तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रियः।
उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये।। (श्रीमद् भगवद् गीता 6.12)
ध्यान के लिए शुद्ध स्थान पर साफ आसन पर बैठना ही पर्याप्त नहीं है। ध्यान के लिए सबसे पहले मन को वश में करें। विचारों का प्रवाह रोकें और मन को एकाग्र करें। इसी तरह रोज ध्यान करने से समभाव की भावना बढ़ती है और मन शांत होता है।
समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिरः।
संप्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन्।। (श्रीमद् भगवद् गीता 6.13)
ध्यान करते समय हमारा शरीर स्थिर रहना चाहिए। सिर और रीढ़ एकदम सीध में रहना चाहिए। अपने आसपास की चीजों पर या आवाजों पर ध्यान न दें। सिर्फ अपनी नासिका यानी नाक के आगे वाले भाग को देखते हुए स्थिर होकर बैठना चाहिए।
प्रशान्तात्मा विगतभीर्ब्रह्मचारिव्रते स्थितः।
मनः संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्परः।। (श्रीमद् भगवद् गीता 6.14)
जिस व्यक्ति का मन शांत है, जो सभी तरह के भय से मुक्त है और जिसके विचारों में शुद्धता है, ऐसा व्यक्ति मन का संयमित करके श्रीकृष्ण का ध्यान करेगा तो उसे विशेष कृपा अवश्य मिलती है।
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