
सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में जाता है तो उसे संक्रांति कहा जाता हैं। जब सूर्य तुला से वृश्चिक राशि में प्रवेश करते हैं तो उसे वृश्चिक संक्रांति कहा जाता है। 16 नवंबर से 15 दिसंबर तक वृश्चिक संक्रांति रहेगी। हिन्दू पंचांग के मुताबिक हर साल कुल 12 संक्रांति आती है और हर राशि में सूर्य 1 महीने तक रहते हैं। सूर्य के इसी भ्रमण की स्थिति को संक्रांति कहा जाता है।
वृश्चिक संक्रांति का महत्व
सोमवार को शुरू होने से इसका महत्व और बढ़ गया है। यह संक्रांति धार्मिक व्यक्तियों, वित्तीय कर्मचारियों, छात्रों व शिक्षकों के लिए बहुत शुभ मानी जाती है। वृश्चिक संक्रांति यानी 16 नवंबर से 15 दिसंबर तक सूर्य पूजा और दान से हर तरह की परेशानियां दूर होती हैं। भगवान सूर्य को अर्घ्य देने से बुद्धि, ज्ञान और सफलता मिलती है।
क्या करें
ग्रंथों के मुताबिक वृश्चिक संक्रांति के दौरान (16 नवंबर से 15 दिसंबर तक) जरूरतमंद लोगों को भोजन और कपड़े दान करने का महत्व है। इस समय कभी भी ब्राह्मण को गाय दान करने से महापुण्य मिलता है।
पूजन विधि
सूर्योदय से पहले उठकर सूर्यदेव की पूजा करनी चाहिए।
पानी में लाल चंदन मिलाकर तांबे के लोटे से सूर्य को जल चढ़ाएं।
रोली, हल्दी व सिंदूर मिश्रित जल से सूर्यदेव को अर्घ्य दें।
लाल दीपक यानी घी में लाल चंदन मिलाकर दीपक लगाएं।
भगवान सूर्य को लाल फूल चढ़ाएं।
गुग्गुल की धूप करें, रोली, केसर, सिंदूर आदि चढ़ाना चाहिए।
गुड़ से बने हलवे का भोग लगाएं और लाल चंदन की माला से “ॐ दिनकराय नमः” मंत्र का जाप करें।
पूजन के बाद नैवेद्य लगाएं और उसे प्रसाद के रूप में बांट दें।
वृश्चिक संक्रांति का फल
सूर्य के वृश्चिक राशि में आने से गलत काम बढ़ सकते हैं। यानी चोरी और भ्रष्टाचारी बढ़ने की आशंका है। वस्तुओं की लागत बढ़ सकती है। मंगल की राशि में सूर्य के आ जाने से 15 दिसंबर तक कई लोगों के लिए परेशानी वाला समय हो सकता है। कई लोग खांसी और ठंड से पीड़ित हो सकते हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सूर्य का अशुभ असर देखने को मिलेगा। कुछ देशों के बीच संघर्ष बढ़ सकता है। आसपास के देशों से भारत के संबंध तनावपूर्ण हो सकते हैं।
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